इंसान को अपनी बनावटी जिंदगी से बाहर आना चाहिए।

DESK:- जीवन दो तरह से जिया जा सकता है- एक, अंतर्मुखी होकर और दूसरा, बहिर्मुखी होकर। अंतर्मुखी होना यानी अपने स्वयं के केंद्र की तरफ लौटना, उसे जानना और उससे जीवन का वास्तविक उद्देश्य समझना। बहिर्मुखी होना यानी बाह्य जगत से जुड़कर उसके आकर्षणों में उलझते रहना।

जो लोग अपने केंद्र पर जीते हैं वे न तो भविष्य में होते हैं और न ही बीते हुए कल में, वे होते वर्तमान के पल में। अगर कोई अपने ही केंद्र से जुड़ा रहता है, तो उसका जीवन संतुलित और तनाव से दूर रहता है। उसे न भविष्य की चिंता सताती है और न ही भूतकाल का दुख चित्त को बेचैन करता है। स्वयं से जुड़ा हुआ व्यक्ति वर्तमान में होता है इसलिए वह गतिशील है। और गतिशीलता की यह ऊर्जा उसे परमात्मा के द्वार पर ले जाकर खड़ा करती है। क्योंकि परमात्मा हमेशा वर्तमान में होता है।

जो व्यक्ति अपने केंद्र पर जीता है वह बाहर की बनावटी दुनिया से अछूता रहता है। हर तरह की लालसा से वह मुक्त रहता है, बाहरी आकर्षणों का मोह उसे घेर नहीं पाता है। इस तरह भूत और भविष्य के भंवर से वह बचा रह जाता है। इसलिए वह सुखी जीवन जीता है। बुद्ध ने कहा है, जिसने स्वयं को जान लिया उसने परमात्मा को जान लिया। वर्तमान जीवन हमें अपने केंद्र की तरफ ले जा सकता है। वर्तमान के उस क्षण को धर्म कहा गया है। वर्तमान में जीने से आप अपनी ऊर्जा का सदुपयोग कर सकते हैं। यह ऊर्जा आपके जीवन को उस दिशा में ले जाती है, जिस दिशा में आप आगे बढ़ना चाहते हैं।

जीवन आज में, अब में और अभी में है। हमारा आने वाला कल भी हमारे आज और अभी से ही निकलेगा। इसलिए जिन्होंने भी इस सत्य को जान लिया है कि जीवन वर्तमान है, जो कुछ करना है उसके लिए अनुकूल समय वर्तमान है, तो वह वर्तमान के क्षणों को समझकर ही जीना चाहेगा। मनुष्य को कुछ करने के लिए केवल वर्तमान का ही पल मिलता है। अब यह हम पर निर्भर करता है कि हम वर्तमान के क्षण को क्या बना सकते हैं, कैसा बना सकते हैं। क्योंकि भविष्य और भूतकाल तो सिर्फ हमारे मन में होता है, उसका कोई अस्तित्व नहीं होता।

अस्तित्व में होता है आज। हम कैलेंडर की बात करते हैं। लेकिन हम उसे कभी वर्तमान को जानने के लिए नहीं देखते हैं। देखते तो हैं उसे आज, पर उसे देखने के पीछे का कारण होता है बीता हुआ कल या आने वाला पल। जो भ्रामक है। वास्तविकता सिर्फ वर्तमान में है और एकमात्र यही सत्य है।

अगर हम खुद को संतुलित करना चाहते हैं, अपनी योजना को पूरा करना चाहते हैं तो हमें इस वर्तमान में ही रहना होगा। यह उचित है कि वर्तमान में रहकर ही हम सही मायने में अपने समय का सदुपयोग कर सकते हैं। क्योंकि हम जो वर्तमान में करते हैं, उसका ही परिणाम आता है। अगर हम इस वर्तमान की स्थिति में उपलब्ध हो सकें तो हम अपने जीवन का रूपांतरण कर पाने में सक्षम होते हैं। इसलिए इस वर्तमान के क्षण को वास्तविक रूप से धर्म की संज्ञा दी गई है।

इस प्रकार जीवन जीने की सही कला है सत्य की पहचान। सत्य स्वयं की पहचान है। अपने बाहर जो कुछ है वह झूठ है क्योंकि वह बदलता रहता है।

Rishikesh Ranjan

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