Basant panchami kab hai

साल 2025 में सरस्वती पूजा कब है, बसंत पंचमी के दिन माँ सरस्वती जी के साथ-साथ कामदेव देवता की भी पूजा होती है यह बिधान है |
इस दिन तिथि दो दिन होने के कारण तिथि को लेकर असमंजस की स्तिथि बन रही है |aiye जानते है बसंत पंचमी की सही तिथि ,मुहूर्त, सरस्वती माँ की पूजा का समय , मंत्र और पौराणिक कथा कब सुरु होगा।
बसंत पंचमी कब है 2025? (Basant Panchami 2025 Date And Time)
वैदिक पंचांग के अनुसार, माघ के शुल्क पछ की पंचमी तिथि 2 फ़रवरी को सुबह 11 बजकर 55 मिनट से आरम्भ हो रही है, जो अगले दिन यानि की 3 फ़रवरी को सुबह 9 बजकर 35 मिनट पर समाप्त होगी। उदया तिथि के हिसाब से बसंत पंचमी का त्यौहार 3 फ़रवरी 2025 को मनाया जायेगा।
Basant Panchami 2025 Date And Time
हिन्दू धर्म में बसंत पंचमी का विशेष महोत्सव के रूप में मनाई जाती है। बसंत पंचमी को वसंत पंचमी भी कहा जाता है। मकर संक्रांति के बाद से सूर्य मकर रेखा से उत्तर की ओर अपनी यात्रा आरम्भ करते है। जिसके साथ धीरे – धीरे सर्दी का मौसम सम्पत होने लगती है। और गरमी का मौसम आरम्भ होने लगती है। मौसम के सुखद बदलाव वसंत के आगमन का संकेत होता है। वसंत पंचमी के दिन माँ सरस्वती के साथ – साथ कामदेव देवता का भी पूजा का विधान है। इस दिन तिथि दो दिन होने के कारण तिथि को लेकर असमंजस की स्तिथि बन रही है |aiye जानते है बसंत पंचमी की सही तिथि ,मुहूर्त, सरस्वती माँ की पूजा का समय , मंत्र और पौराणिक कथा कब सुरु होगा Saraswati Puja Kab Hai
saraswati puja kab hai (Time And Date)
बसंत पंचमी के दिन सरस्वती पूजा का विधान है। इस दिन आप 2 फ़रवरी की सुबह 7 बजकर 10 मिनट से लेकर रात 9 बजकर 30 मिनट तक के बिच माँ सरस्वती की पूजा कर सकते है।
Saraswati Puja Kab Hai
बसंत पंचमी पर हुई थी मां सरस्वती का प्राकट्य
बसंत पंचमी के बारे में पौराणिक मान्यता है कि इस दिन ब्रह्मा जी ने सरस्वती की रचना की थी। क्योंकि ऐसी मान्यता है कि सृष्टि के आरंभ काल में प्राणियों में स्वर (बोलने की क्षमता) नहीं था। सृष्टि की शांत वातावरण को देखते हुए ब्रह्मा जी के मन में आया कि क्यों न एक ऐसी शक्ति की उत्पत्ति की जाए जिसके द्वारा सृष्टि की सभी प्राणियों में बोलने की क्षमता का विकास हो जाए। तब उन्होंने मां सरस्वती को प्रकट किया। जिनके हाथों में वीणा, माला और पुस्तक धारण किया हुआ था। मां सरस्वती ने अपनी वीणा से वसंत राग छेड़ा। जिसके बाद सृष्टि को वाणी और संगीत की प्राप्ति हुई। माघ मास के शुक्ल पक्ष की पंचमी तिथि को मां सरस्वती प्रकट हुई थी। इसी के कारण इस दिन मां सरस्वती की पूजा करने का विधान है।
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बसंत पंचमी पर कामदेव की पूजा करने का भी विधान
पौराणिक कथा के अनुसार, एक बार भगवान शिव कठोर तपस्या में थे। वहीं दूसरी ओर तारकासुर नाम का राक्षस संसार में उत्पाद मचा रखा था, क्योंकि वरदान प्राप्त था कि केवल शिव का पुत्र ही उसके जीवन का अंत कर सकेगा। लेकिन मां सती के अग्नि में समा जाने के बाद किसी को इस बात का अंदाजा नहीं था कि वह दोबारा विवाह करें। इस तथ्य से उत्साहित होकर तारकासुर ने पूरी दुनिया में कहर बरपाना शुरू कर दिया था। लेकिन कुछ समय बीत जाने के बाद मां सती ने पार्वती माता के रूप में हिमालय राज के घर पर जन्म लिया और शिव जी को अपने पति के रूप में पुन: पाने के लिए कठोर तपस्या की। हालांकि, शिव अविचल थे। शिव की जी तपस्या देखकर इंद्र देव भी डर गए हैं और उन्होंने शिव को उनके ध्यान से जगाने के लिए विभिन्न प्रयत्न किए लेकिन सफलता हासिल नहीं हुई। लेकिन अंत में उन्होंने प्रेम के देवता कामदेव को शिव जी की तपस्या भंग करने के लिए भेजा। यह बसंत पंचमी का दिन था जब कामदेव शिव के पास पहुंचे और भगवान को आकर्षित करने और उन्हें उनकी तपस्या से बाहर लाने के लिए नृत्य किया। अंततः शिव जागते हैं लेकिन क्रोधित होकर उनकी तीसरी आंख खुली और उससे कामदेव को भस्म कर देते हैं। फिर कामदेव की पत्नी रति के आवेदन करने से शिव जी ने पुन:कामदेव को जीवित किया था। इसके बाद शिव जी मां पार्वती के साथ विवाह करते हैं। शिव और पार्वती से जन्मे पुत्र भगवान कार्तिकेय ने तारकासुर का विनाश किया और संसार की रक्षा की थी।
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